सागर में पाश्चात्य शिक्षा का प्रादुर्भाव
सन् 1827 में जेम्स पैटन ने सागर में पाश्चात्य ढंग की नौ शालाएं आरंभ कीं जिनमें बालकों को मिठाई और नगद पुरस्कारों का प्रलोभन देकर आकर्षित किया गया। इनमें से एक शाला कटरा में थी, दूसरी गोपालगंज में थी। दो शालाएं पलोटनगंज और चमेलीचौक में थीं। इनमें कोई शुल्क नहीं लिया जाता था और स्लेट, कागज तथा पुस्तकें निशुल्क दी जाती थीं। ऐसी कुछ शालाएं राहतगढ़ तथा जिले के अन्य भागों में भी खोली गईं।
मध्य भारत में ये अपनी तरह का पहला मामला था, इसलिए पैटन को इस क्षेत्र में पाश्चचात्य शिक्षा का प्रवर्तक कहना उचित होगा। दुर्भाग्य से पैटन ने शीघ्र सागर छोड़ दिया और ये संस्थाएं निष्क्रिय हो गईं। बाद में कृष्णराव रिंगे नामक एक लोकोपकारी व्यक्ति ने इनका प्रबंधन संभाला। सन् 1836 में सागर में विलियम बैंटिक ने पहली बार हाईस्कूल की कक्षाएं आरंभ करवाईं और उसे कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध किया गया।
जिले में महाविद्यालयीन शिक्षा: सागर में महाविद्यालयीन शिक्षा आरंभ करने का पहला प्रयास सन् 1940 में किया गया। सागर के कुछ प्रमुख नागरिकों ने एक आर्ट्स कॉलेज की स्थापना की जो करीब पांच सालों तक चला। बाद में इसे हिंदू कॉलेज में संविलीन कर दिया गया। इसके एक साल बाद सन् 1946 में डॉ। हरिसिंह गौर ने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की।
वर्तमान शिक्षा परिदृश्य: सागर आज शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग कॉलेज के बाद अब सागर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जा रही है। पिछले वर्ष नवंबर में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मेडिकल कॉलेज के भवन निर्माण के काम का शुभारंभ किया था। हालांकि यह शुरुआत में ही अपने निर्धारित लक्ष्य से काफी पिछड़ गया है। उम्मीद है कि अगले वर्ष तक कॉलेज शुरू हो जाएगा।
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